सोच रहा हूं कि कहां से शुरू करूं। From the beginning या बीच से, खैर शुरू करता हूं।
किरदार : मैं, आप या कोई भी।
वक्त : मेरा, आपका या यूं कहें हम सबका।
Hmmmm Let’s start...
बात बहुत पुरानी भी नहीं है और आज के वक्त की भी नहीं कही जा सकती है। तब वक्त की रफ्तार हमें आज की भागती-दौड़ती जिंदगी से कम लगती थी। करियर (career) की कोई चिंता नहीं थी या यूं कह लें कि उस वक्त को रोजाना जीने के अलावा कुछ सोचते ही नही थे। ‘कुछ बनना है या कुछ करना है’ यह तो हमारे पैरंट्स ही हमें याद दिलाते रहते थे। तब हम भी जोश में आकर सोचते थे, ‘क्या बनना है और क्या करना है’। ये जोश और जुनून भी कुछ देर के लिए ही रहता था। कब तक, जिस दिन यह याद दिलाया जाता था तब तक। अगला दिन हम फिर उसी बेकदरी और बेख्याली के साथ जीते थे। दिन, महीने, साल गुजरते गए और एक दिन हम उस चौराहे पर थे, जहां हमें यह तय करना था कि ‘क्या बनना है और क्या करना है’। यहां हम शून्य थे और इसके लिए तैयार नहीं थे कि क्या करें। तब जाकर अहसास हुआ कि वक्त (Time) कितनी तेजी से निकल गया।
यही वो वक्त होता है जब आप अपने मन का नहीं, अपनों के मन का करने के लिए मजबूर होते हैं और आपकी लाइफ अपनी नहीं रहती। आप चाहकर भी अपने मन का नहीं कर सकते हैं और इसकी इजाजत हम खुद को नहीं दे पाते।
Goal Setting
तो भइया, लाइफ को एक उद्देश्य (Goal) दीजिए। हां, यह जरूरी नहीं कि यह Goal बेहद लंबा हो। छोटे-छोटे Goal को सेट करिए और तब जोश और जुनून के साथ लाइफ (Life) को हर पल एक नए मुकाम पर देखेंगे आप।
यह कोई संदेश नहीं है, यह तो हमारे बीच से ही निकला एक अनुभव है, जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। अगर हम चाहें तो…..
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